हुस्न ने मान लिया क़ाबिल-ए-ताज़ीर मुझे नज़र आई है मोहब्बत की ये तक़्सीर मुझे क्यूँ न हो बादा-ए-सर-जोश की तौक़ीर मुझे मिल गई पीर-ए-ख़राबात से तहरीर मुझे जल्वा-ए-हुस्न के मफ़्हूम पे जब ग़ौर किया एक धुँदली सी नज़र आई है तस्वीर मुझे अब मिरी वहशत-ए-रुस्वा का अजब आलम है कर दिया आप ने वाबस्ता-ए-ज़ंजीर मुझे बे-तकल्लुफ़ रुख़-ए-ज़ेबा से उठाए वो नक़ाब हुस्न ख़ुद पाएगा एक पैकर-ए-तस्वीर मुझे ज़िंदगी इक नए आलम में नज़र आती है ले चली आज कहाँ गर्दिश-ए-तक़दीर मुझे खिच गई दिल-कशी-ए-हुस्न मरी नज़रों में जी बहलने को मिली आप की तस्वीर मुझे ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ रुख़-ए-अनवर की सताइश को सिवा कोई मज़मून न मिला क़ाबिल-ए-तहरीर मुझे हुस्न-ए-दिलकश के तलव्वुन पे नज़र जब पहुँची न रहा फिर गिला-ए-गर्दिश-ए-तक़दीर मुझे