हुस्न-ए-मुत्लक़ है क्या किसे मालूम इब्तिदा इंतिहा किसे मालूम मेरी बेताबियों की खा के क़सम बर्क़ ने क्या किया किसे मालूम दिन-दहाड़े शबाब के हाथों हाए मैं लुट गया किसे मालूम मेरी कुछ गर्म ओ सर्द आहों से आसमाँ क्या हुआ किसे मालूम हुस्न का हर ख़याल रौशन है इश्क़ का मुद्दआ किसे मालूम 'सेहर' के हम-नवा फ़रिश्ते हैं है मक़ाम उस का क्या किसे मालूम