हुस्न-ए-सद-रंग से फ़िरदौस ब-दामाँ निकला हम ने जिस फूल को देखा वो गुलिस्ताँ निकला हो गए दाद-तलब और बलाओं में असीर हश्र इक सिलसिला-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ निकला और क्या शय है ये मेराज-ए-मोहब्बत के सिवा आरज़ू आप की हो कर मिरा अरमाँ निकला ख़ाक में गर्दिश-ए-दौराँ ने मिलाया मुझ को और इस पर भी मैं सर-हल्क़ा-ए-दौराँ निकला उफ़ रे ये जज़्बा-ए-ख़ुद्दार 'मुनव्वर' की नुमूद इक अजब शान का शाइ'र ये सुख़न-दाँ निकला