आई है ऐसे ग़म में रवानी परत परत बहने लगा है आँख से पानी परत परत बाँधा है जब से तेरे तसव्वुर को शेर में शे'रों के खुल रहे हैं मआ'नी परत परत छाया रहा हो जैसे बुढ़ापा नफ़स नफ़स गुज़री है ऐसे अपनी जवानी परत परत दिल के वरक़ वरक़ पे तिरा नाम सब्त है इक तू ही धड़कनों में है जानी परत परत गर्द-ओ-ग़ुबार ग़म से अटी है फ़ज़ा फ़ज़ा होती थी कोई रुत जो सुहानी परत परत लेकिन बना न क़ैस की सूरत हमारा नाम सहरा की ख़ाक हम ने भी छानी परत परत कोई जवाज़ दे न सका मेरी बात का उस ने ग़लत कहा है ज़बानी परत परत यादें दिला रही है सितमगर की बार बार मुझ को रुला रही है निशानी परत परत हासिल करूँगा जैसे भी मुमकिन हुआ उसे मैं ने 'नबील' दिल में है ठानी परत परत