इब्न-ए-आदम बरसर पैकार है गर्म ज़ुल्म-ओ-जौर का बाज़ार है दनदनाते फिर रहे हैं शर-पसंद कौन आख़िर इस का ज़िम्मेदार है बो रहा है बुग़्ज़ व नफ़रत के वो बीज जिस की अपनी ज़ेहनियत बीमार है है अज़ीज़ अपना उसे शख़्सी मफ़ाद मस्लहत-बीं आज का फ़नकार है ख़ून-ए-इंसाँ की तिजारत के लिए जिस को अपना फ़ाएदा दरकार है करता है बरहम निज़ाम ज़िंदगी सिर्फ़ माल-ओ-ज़र से उस को प्यार है देख कर चलिए ज़रा दाम-ए-फ़रेब वो शिकारी दरपै-ए-आज़ार है रखिए गिर्द-ओ-पेश पर अपने नज़र गुल के पहलू में वह देखें ख़ार है जिस की नज़रों में बराबर हों सभी मुल्क-ओ-मिल्लत का वही मे'मार है हक़ ने दी है आप को वह अक़्ल-ए-कुल जो मोहब्बत की अलम-बरदार है आओ मिल-जुल कर उसे हम तय करें ज़िंदगी का जो सफ़र दुश्वार है भाई चारे की फ़ज़ा क़ाएम करें आप का 'बर्क़ी' यही ग़म-ख़्वार है