वफ़ा के दा'वों पे हँस रहा था मुझे नया हिज्र हो गया था बहुत ही बद-शक्ल निकली दुनिया मैं पहले पर्दे पे देखता था उसे बताता था मेरी बातें ख़ुदा मिरी काल सुन रहा था समझ में क्या आता मेरा लहजा किसी की बातों में आ गया था उतार फेंकी थी शाम सर से अभी तो पारा नहीं चढ़ा था तुम आज तक रो रहे हो जो ग़म वो दो दिनों से ज़ियादा का था ग़रीब बेवा का हाथ थामा मदीने जाने का रास्ता था और उस की हरयानवी ज़बाँ थी और उस के हाथों में इक घड़ा था ये जुमला जो पहले कह दिया है ये वस्ल के ऐन बाद का था