इब्तिदा-ए-इश्क़ है लुत्फ़-ए-शबाब आने को है सब्र रुख़्सत हो रहा है इज़्तिराब आने को है क़ब्र पर किस शान से वो बे-नक़ाब आने को है आफ़्ताब-ए-सुब्ह-ए-महशर हम-रिकाब आने को है मुझ तक उस महफ़िल में फिर जाम-ए-शराब आने को है उम्र-ए-रफ़्ता पलटी आती है शबाब आने को है हाए कैसी कशमकश है यास भी है आस भी दम निकल जाने को है ख़त का जवाब आने को है ख़त के पुर्ज़े नामा-बर की लाश के हमराह हैं किस ढिटाई से मिरे ख़त का जवाब आने को है ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है रूह घबराई हुई फिरती है मेरी लाश पर क्या जनाज़े पर मेरे ख़त का जवाब आने को है भर के साक़ी जाम-ए-मय इक और ला और जल्द ला उन नशीली अँखड़ियों में फिर हिजाब आने को है ख़ाना-ए-तस्वीर में आने को है तस्वीर-ए-यार आइने में क़द-ए-आदम आफ़्ताब आने को है फिर हिनाई होने वाले हैं मिरे क़ातिल के हाथ फिर ज़बान-ए-तेग़ पर रंग-ए-शहाब आने को है गुदगुदाता है तसव्वुर चुटकियाँ लेता है दर्द क्या किसी बे-ख़्वाब की आँखों में ख़्वाब आने को है देखिए मौत आए 'फ़ानी' या कोई फ़ित्ना उठे मेरे क़ाबू में दिल-ए-बे-सब्र-ओ-ताब आने को है