इधर आ कर शिकार-अफ़्गन हमारा मुशब्बक कर गया है तन हमारा गरेबाँ से रहा कोतह तो फिर है हमारे हाथ में दामन हमारा गए जों शम्अ' उस मज्लिस में जितने सभों पर हाल है रौशन हमारा बला जिस चश्म को कहते हैं मर्दुम वो है ऐन-ए-बला मस्कन हमारा हुआ रोने से राज़-ए-दोस्ती फ़ाश हमारा गिर्या था दुश्मन हमारा बहुत चाहा था अब्र-ए-तर ने लेकिन न मिन्नत-कश हुआ गुलशन हमारा चमन में हम भी ज़ंजीरी रहे हैं सुना होगा कभू शेवन हमारा किया था रेख़्ता पर्दा-सुख़न का सो ठहरा है यही अब फ़न हमारा न बहके मय-कदे में 'मीर' क्यूँकर गिरो सौ जा है पैराहन हमारा