इधर की आएगी इक रौ उधर की आएगी कि मेरे साथ तो मिट्टी सफ़र की आएगी ढलेगी शाम जहाँ कुछ नज़र न आएगा फिर इस के ब'अद बहुत याद घर की आएगी न कोई जा के उसे दुख मिरे सुनाएगा न काम दोस्ती अब शहर भर की आएगी अभी बुलंद रखो यारो आख़िरी मशअल इधर तो पहली किरन क्या सहर की आएगी कुछ और मोड़ गुज़रने की देर है बानी सदा न गर्द किसी हम-सफ़र की आएगी