इक आन में ही यूँ तिरा पैकर बदल गया जैसे स्टेज पर कोई मंज़र बदल गया सुनता नहीं है कोई भी मेरी पुकार को दस्तक बदल गई कि मिरा घर बदल गया इक आन में ही सब दर-ओ-दीवार धुल गए बारिश से शहर-भर का मुक़द्दर बदल गया ख़ल्वत में जिस के लब पे थे मेरी वफ़ा के गीत वो शख़्स मेरे सामने आ कर बदल गया 'बेताब' अब तो हद-ए-नज़र तक ही रेत है रातों ही रात कितना समुंदर बदल गया