इक आस तो है कोई सहारा नहीं तो क्या रस्ते में कुछ शजर तो हैं साया नहीं तो क्या रहता है कोई शख़्स मिरे दिल के आस पास मैं ने उसे क़रीब से देखा नहीं तो क्या तू ही बता कि चाहें तुझे और किस तरह ये तेरी जुस्तुजू ये तमन्ना नहीं तो क्या हम दूर दूर रह के भी चलते रहे हैं साथ हम ने क़दम क़दम से मिलाया नहीं तो क्या रेग-ए-रवाँ की तरह हैं सारे तअल्लुक़ात तुम ने किसी का साथ निभाया नहीं तो क्या वैसे हमें तो प्यास में दरिया की थी तलाश अब ये सराब ही सही दरिया नहीं तो क्या सोचा भी तुम ने दश्त चमन कैसे बन गया मेहनत का ये अरक़ ये पसीना नहीं तो क्या 'मोहसिन' मिरी निगाह को अच्छा लगा वही दुनिया की वो नज़र में जो अच्छा नहीं तो क्या