इक अख़्गर-ए-जमाल फ़रोज़ाँ ब-शक्ल-ए-दिल फेंका इधर भी हुस्न-ए-तजल्ली-निसार ने अफ़्सुर्दगी भी हुस्न है ताबिंदगी भी हुस्न हम को ख़िज़ाँ ने तुम को सँवारा बहार ने इस दिल को शौक़-ए-दीद में तड़पा के कर दिया क्या उस्तुवार वा'दा-ए-ना-उस्तवार ने जल्वे की भीक दे के वो हटने लगे थे ख़ुद दामन पकड़ लिया निगह-ए-ए'तिबार ने गेसू ग़ुबार-ए-राह-ए-तमन्ना से अट न जाएँ सहरा में आप निकले हैं हम को पुकारने