इक फ़रामोश कहानी में रहा मैं जो उस आँख के पानी में रहा रुख़ से उड़ता हुआ वो रंग-ए-बहार एक तस्वीर पुरानी में रहा मैं कि मादूम रहा सूरत-ए-ख़्वाब फिर किसी याद-दहानी में रहा ढंग के एक ठिकाने के लिए घर-का-घर नक़्ल-ए-मकानी में रहा मैं ठहरता गया रफ़्ता रफ़्ता और ये दिल अपनी रवानी में रहा वो मिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए-तलब अहद-ए-रफ़्ता की निशानी में रहा मैं कि हंगामा-ए-यक-ख़्वाब लिए कोई दिन आलम-ए-फ़ानी में रहा