इक जफ़ा-जू से मोहब्बत हो गई हाए ये कैसी हिमाक़त हो गई हो गया जिस पर मसीहा मेहरबाँ बंद उस के दिल की हरकत हो गई आ गई उन की जवानी आ गई हो गई बरपा क़यामत हो गई ये तसव्वुर की करिश्मा-साज़ियाँ देखा जिस शय को वो औरत हो गई लीजे वो उट्ठी निगाह-ए-इल्तिफ़ात लीजे तकमील-ए-हिमाक़त हो गई जब निगाह-ए-नाज़ कमसिन की उठी नन्ही-मुन्नी इक क़यामत हो गई जब हुए वो माइल-ए-अहद-ए-वफ़ा बढ़ के माने उन की लुक्नत हो गई क्या करे बेचारी दुज़दीदा निगाह चोरी करना उस की फ़ितरत हो गई ये इनायात-ए-मुसलसल अल-अमाँ दुगुनी और तिगुनी मुसीबत हो गई मुँह लगी उम्माल-ए-अहद-ए-नौ के भी किसी क़दर गुस्ताख़ रिश्वत हो गई मैं ने यूँ दिल को बनाया आईना आईना-गर को भी हैरत हो गई लाख ज़ालिम ने छुपाए अपने ऐब 'शौक़' उस की फिर भी शोहरत हो गई