इक ख़ानुमाँ-ख़राब की दौलत कहें जिसे वो दर्द दिल में है कि मोहब्बत कहें जिसे रानाई-ए-ख़याल के क़ुर्बान जाइए सूरत है वो नज़र में हक़ीक़त कहें जिसे दर्द-ए-फ़िराक़-ए-यार की मजबूरियाँ बजा इतना तो हो न शोर क़यामत कहें जिसे दे सकता हो तो दे मुझे दाद-ए-सितम-कुशी या वो सुलूक कर कि अदावत कहें जिसे लज़्ज़त-कश-ए-नज़ारा है तेरी नज़र तो क्या इतनी तो बे-ख़ुदी हो कि हैरत कहें जिसे बाक़ी कहाँ से 'राज़' ज़माने में आज-कल वो हुस्न-ए-दिल-नवाज़ मोहब्बत कहें जिसे