इक सब्ज़ रंग बाग़ दिखाया गया मुझे फिर ख़ुश्क रास्तों पे चलाया गया मुझे तय हो चुके थे आख़िरी साँसों के मरहले जब मुज़्दा-ए-हयात सुनाया गया मुझे पहले तो छीन ली मिरी आँखों की रौशनी फिर आइने के सामने लाया गया मुझे रक्खे थे उस ने सारे स्विच अपने हाथ में बे-वक़्त ही जलाया बुझाया गया मुझे चारों तरफ़ बिछी हैं अँधेरों की चादरें शायद अभी फ़ुज़ूल जगाया गया मुझे निकले हुए थे ढूँडने ख़ूँ-ख़्वार जानवर काँटों की झाड़ियों में छुपाया गया मुझे इक लम्हा मुस्कुराने की क़ीमत न पूछिए बे-इख़्तियार पहले रुलाया गया मुझे