इक साँवले बदन से मोहब्बत क़ुबूल कर ऐ रब्ब-ए-इश्क़ दिल की शहादत क़ुबूल कर आँखों से मेरी उस के दुपट्टे तक आया है ऐ रब्ब-ए-दर्द अश्क की हिजरत क़ुबूल कर सहरा अगर नहीं है तो सहरा से कम नहीं ऐ रब्ब-ए-क़ैस क़ल्ब की वहशत क़ुबूल कर दिल ने अभी बिछाई है जा-ए-नमाज़-ए-इश्क़ लुक्नत-ज़दा ज़बाँ की इक़ामत क़ुबूल कर मैं ने नमाज़ छोड़ के इक जाँ बचाई है मा'बूद-ए-लम-यज़ल ये इबादत क़ुबूल कर