इक तिरी याद के सहारे पर ज़िंदगी कट गई किनारे पर कौन रस्ते बदल रहा है वहाँ कौन रहता है इस सितारे पर रौशनी की अगर अलामत है राख उड़ती है क्यूँ शरारे पर इम्तिहाँ की ख़बर नहीं लेकिन रो रहा हूँ अभी ख़सारे पर जब नज़र को नज़र नहीं आया ज़िंदगी रुक गई नज़ारे पर मेरे इसरार पर नहीं आया जिस को इसरार था इशारे पर ख़ुद-नुमाई का जाल था 'साहिल' मैं ने भी फ़िक्र के सँवारे पर