इक़रार-ए-वफ़ा उम्मीद-ए-करम कुछ कह न सके कुछ भूल गए वा'दे वो तिरे मुबहम मुबहम कुछ कह न सके कुछ भूल गए सरशारी-ए-उल्फ़त का आलम कुछ कह न सके कुछ भूल गए जज़्बात की वो धीमी सरगम कुछ कह न सके कुछ भूल गए आलाम की वो यूरिश पैहम कुछ कह न सके कुछ भूल गए डूबी हुई नब्ज़ों का आलम कुछ कह न सके कुछ भूल गए यादों की ख़लिश वो शाम-ओ-सहर मायूस से वो दीवार-ओ-दर एहसास की लौ मद्धम मद्धम कुछ कह न सके कुछ भूल गए क्या वहम-ओ-गुमाँ क्या ईल्म-ओ-यकीं क्या फ़िक्र-ओ-ग़म-ए-दुनिया-ओ-दीं हस्ती के वो सारे पेच-ओ-ख़म कुछ कह न सके कुछ भूल गए वो शे'र-ए-मुजस्सम जान-ए-सुख़न हर साँस में यूँ है नग़्मा-ज़न अफ़्साना-ए-ग़म रूदाद-ए-अलम कुछ कह न सके कुछ भूल गए कब दौर-ए-ख़िज़ाँ आया और कब रुख़्सत वो गुल-ए-रानाई हुआ महरूमी-ए-जाँ मजबूरि-ए-ग़म कुछ कह न सके कुछ भूल गए दिल ऐसे पुराने पापी को क्या काम है दीन-ओ-ईमाँ से वो साज़-ए-कलीसा सोज़-ए-हरम कुछ कह न सके कुछ भूल गए उन्वान यही ठहरे 'सरवर' अफ़्साना-ए-हस्ती के तेरे या क़ल्ब-ए-हज़ीं या दीदा-ए-नम कुछ कह न सके कुछ भूल गए