इक-बटा-दो को करूँ क्यूँ न रक़म दो-बटा-चार इस ग़ज़ल पर है क़वाफ़ी का करम दो-बटा-चार शो'ला-ए-गुल से चमन में कहीं लग जाए न आग अब तो शबनम भी नज़र आती है नम दो-बटा-चार कौन कहता है कि जंगल में नहीं शेर को ग़म मैं ने ज़ैग़म में मिला देखा है ग़म दो-बटा-चार उस के सीने से लगे बैठे हैं ज़ख़्मों के सबब देखो मरहम में नज़र आते हैं हम दो-बटा-चार क़ासिम-ए-नार-ओ-जिनाँ की है मोहब्बत दिल में हो गया हिस्सा जहन्नुम का तो नम दो-बटा-चार मौसम-ए-गुल की क़सम खा न ख़ुदारा बुलबुल देख मौसम में मिला रहता है सम दो-बटा-चार दिल लिए फिरता है तस्वीर-ए-बुताँ का एल्बम फट न जाए ये कहीं इस में है बम दो-बटा-चार सूरत-ए-बद्र हिलाल आई नज़र उन की जबीं ज़ुल्फ़ें लहराईं हैं खा खा के जो ख़म दो-बटा-चार वा'दे हमदम के रहें क्यूँ न अधूरे ऐ 'वक़ार' इस में लो ख़ुद ही नज़र आता है दम दो-बटा-चार