इलाही ख़ैर हो अब अपने आशियाने की निगाहें उस की तरफ़ फिर उठीं ज़माने की हवा-ए-तुंद गुज़र जाए सर-निगूँ हो कर इक ऐसा आशियाँ कोशिश करो बनाने की ख़िज़ाँ के आने से हो जाएँ ग़म-ज़दा जो फूल उन्हें क़सम है बहारों में मुस्कुराने की किसी की बर्क़-ए-नज़र से न बिजलियों से जले कुछ इस तरह की हो ता'मीर आशियाने की वो पूछते हैं कि दिन किस तरह गुज़रते हैं ये कोई बात है 'ताबाँ' उन्हें बताने की