दाग़ बैआ'ना हुस्न का न हुआ खोटे दामों मोआ'मला न हुआ दिल मुकद्दर रहा सफ़ा न हुआ फ़ैज़ आईना-रूओं का न हुआ कुछ न काम आए दाग़ की बूटी क़ल्ब ताँबा रहा तिला न हुआ दर्द-मंदान-ए-ख़ाल कहते हैं गोलियाँ खाईं फ़ाएदा न हुआ दिल ख़यालों से पाएमाल रहा सब्ज़ा-ए-रह-गुज़र हरा न हुआ आए फ़स्ल-ए-चमन कि ईद आए ग़ुंचे चटके कि शादियाना हुआ हर किसी ज़ुल्फ़ में रहा उलझा दाम-ए-उल्फ़त से दिल रिहा न हुआ न खटकते किसी के आँखों में ये ग़ुबार अपना तूतिया न हुआ मेरे आगे वो बैठे ग़ैर के पास पास मेरा उन्हें ज़रा न हुआ दिल ने ऐसे उठाए रंज-ओ-तअब फिर मोहब्बत का हौसला न हुआ जब किसी की नज़र पड़े रुख़ पर ख़ाल-ए-मुश्कीं सियाह दाना हुआ देखी कैफ़िय्यत-ए-बहार-ओ-ख़िज़ाँ मैं दो-रंगी से आश्ना न हुआ दिल शगुफ़्ता हुआ न फूलों से कोई काँटा गिरह-कुशा न हुआ घर बना कर यहाँ ये तंग आया उक़्दा-ए-ख़ातिर आशियाना हुआ रश्क का है मआल बे-रंगी सब्ज़ा पिस कर कभी हिना न हुआ 'बहर' दिल सोच कर उसे देना ख़ुद-ग़रज़ आश्ना हुआ न हुआ