इन अक़्ल के बंदों में आशुफ़्ता-सरी क्यूँ है ये तंग-दिली क्यूँ है ये कम-नज़री क्यूँ है असरार अगर समझे दुनिया की हर इक शय के ख़ुद अपनी हक़ीक़त से ये बे-ख़बरी क्यूँ है सौ जल्वे हैं नज़रों से मानिंद-ए-नज़र पिन्हाँ दावा-ए-जहाँ-बीनी ऐ दीदा-वरी क्यूँ है हल जिन का अमल से है पैकार-ओ-जदल से है इन ज़िंदा मसाइल पर बहस-ए-नज़री क्यूँ है तो देख तिरे दिल में है सोज़-ए-तलब कितना मत पूछ दुआओं में ये बे-असरी क्यूँ है ऐ गुल जो बहार आई है वक़्त-ए-ख़ुद-आराई ये रंग-ए-जुनूँ कैसा ये जामा-दरी क्यूँ है वाइज़ को जो आदत है पेचीदा-बयानी की हैराँ है कि रिंदों की हर बात खरी क्यूँ है मिलता है उसे पानी अश्कों की रवानी है मालूम हुआ खेती ज़ख़्मों की हरी क्यूँ है उल्फ़त को 'असद' कितना आसान समझता था अब नाला-ए-शब क्यूँ है आह-ए-सहरी क्यूँ है