इन को देखा था कहीं याद नहीं आसमाँ था कि ज़मीं याद नहीं चाँद तारों की मुँदी थीं आँखें था कहाँ मेहर-ए-मुबीं याद नहीं नग़्मा ही नग़्मा था या रंग ही रंग हम मकाँ थे कि मकीं याद नहीं अहद-ओ-पैमाँ की झमकती शमएँ किस तरह डूब गईं याद नहीं अब ये आलम है कि ख़ुद हम को भी क्यूँ हुए बर्क़-नशीं याद नहीं मौत प्यारी जो लगा करती है इस क़दर क्यूँ है ग़मीं याद नहीं रस भरी सुब्हें नशीली शामें किस के हमराह गईं याद नहीं राख के ढेर हैं चारों जानिब बस्तियाँ कैसे लुटीं याद नहीं जिन की ता'बीर हैं आँसू 'शोहरत' आज वो ख़्वाब-ए-हसीं याद नहीं