इन शोख़ हसीनों की निराली है अदा भी बुत हो के समझते हैं कि जैसे हैं ख़ुदा भी घबरा के उठी है मिरी बालीं से क़ज़ा भी जाँ-बख़्श है कितनी तिरे दामन की हवा भी यूँ देख रहे हैं मिरी जानिब वो सर-ए-बज़्म जैसे कि किसी बात पे ख़ुश भी हैं ख़फ़ा भी मायूस-ए-मोहब्बत है तो कर और मोहब्बत कहते हैं जिसे इश्क़ मरज़ भी है दवा भी तुझ पर ही 'सहर' है कि तू किस हाल में काटे जीना तो हक़ीक़त में सज़ा भी है जज़ा भी