आईने के अक्स से गुल सा बदन मैला हुआ सुब्ह के परतव से रंग-ए-यासमन मैला हुआ साफ़ ऐ उर्यानी-ए-वहशत कहे देता हूँ मैं पोस्त खींचूँगा अगर मेरा बदन मैला हुआ ब'अद मुर्दन भी तकल्लुफ़ से कुदूरत दिल में है सोहबत-ए-काफ़ूर से अपना बदन मैला हुआ क्या तिरी तलवार भी मुझ से ग़ुबार-आलूद थी ख़ून-ए-दिल का रंग क्यूँ ऐ तेग़-ज़न मैला हुआ शायरों में गुफ़्तुगू आई कुदूरत की बहम साफ़ कहता हूँ कि अब रंग-ए-सुख़न मैला हुआ वस्ल की शब बातों बातों में मुकद्दर हो गई गुफ़तुगू-ए-बोसा से रंग-ए-दहन मैला हुआ साफ़-गोई से ग़ुबार आईने में आया 'मुनीर' मेरी बातों से दिल-ए-अहल-ए-सुख़न मैला हुआ