इन्हें मत छेड़िए इन को तो ख़्वाहिश है सिंघासन की फ़क़त ये जान लीजे ये है आदत मुल्क-दुश्मन की इसे तन्हाई में जब याद आई अपने साजन की ग़मों के साए में गुज़री थी कल की रात बिरहन की बताऊँ क्या तुम्हें सरकश हवा की दास्ताँ यारों कि शाख़ें सूखती ही जा रही है मेरे गुलशन की ख़ुदाया ये हमारी क़ौम में तफ़रीक़ है कैसी सभी को एक कर दे ये दुआ है मेरे तन-मन की कि बढ़ता जा रहा है ज़ाफ़रानी रंग हर शय पर नज़र आती नहीं है ख़ैर अब अपने नशेमन की मुझे फाँसी पे लटका दो मगर सच बात बोलूँगा चिता हर गाम पर जलती है यारो आज दुल्हन की ये कैसा दौर आया है ये कैसे लोग हैं 'साजिद' मदद कोई नहीं करता यहाँ दिल से अभागन की