इंसान से इंसान को नफ़रत नहीं अच्छी एहसान जताने की भी आदत नहीं अच्छी भाई की बुराई जो किया करता है हर दम हर ऐसे मुनाफ़िक़ की मोहब्बत नहीं अच्छी ज़िल्लत के सिवा और न कुछ उस को मिलेगा मक्कार-ओ-गुनहगार की सोहबत नहीं अच्छी करता है अमानत में ख़यानत जो सरासर हर ऐसे बशर से कोई निस्बत नहीं अच्छी आए न कभी काम ग़रीबों के तो ऐ दोस्त अम्बार हो दौलत का वो दौलत नहीं अच्छी गुलशन के सँवरने में लहू हम ने दिया है हक़दार-ए-गुलिस्ताँ से बग़ावत नहीं अच्छी इंसाफ़ ग़रीबों को जो मुंसिफ़ न दिलाए हो ऐसी जहाँ पर वो अदालत नहीं अच्छी 'यासीन' जो फ़ितरत है बदलती नहीं लेकिन है वक़्त बदल जो तिरी आदत नहीं अच्छी