इंसान को मिलते हैं नई बात के पत्थर टकराते हैं जिस वक़्त ख़यालात के पत्थर एहसास पे गिरते हैं जो औक़ात के पत्थर जज़्बों को कुचल देते हैं हालात के पत्थर जब प्यार की राहों में क़दम उस ने बढ़ाया मजनूँ को भी मारे गए दिन रात के पत्थर काबा हो या काशी हो ज़रा ग़ौर से देखो अज़्मत की निशानी हैं मक़ामात के पत्थर क्या हो गया इस दौर को अरबाब-ए-ख़िरद को पड़ने लगे अक़्लों पे रिवायात के पत्थर दीवाना जो गुज़रा है कभी तेरी गली से मारे उसे लोगों ने सवालात के पत्थर क्यों कर न हो आईना-ए-जज़बात शिकस्ता आए हैं मिरे नाम जवाबात के पत्थर दिल पर मिरे उस जान-ए-वफ़ा ने सर-ए-महफ़िल फेंके हैं निगाहों से इशारात के पत्थर महफ़िल में 'निगार' उन के लिए मैं ने तराशे अल्फ़ाज़ की शक्लों में ख़यालात के पत्थर