इंसानियत के नाम को रुस्वा न कीजिए मत कीजिए बुरा भी गर अच्छा न कीजिए ये मो'जिज़ों का दौर नहीं है मिरे हुज़ूर क़ातिल से ज़िंदगी की तमन्ना न कीजिए पर्दे से ख़ूबियों के दिखेंगी बुराइयाँ इंसान को क़रीब से देखा न कीजिए मत ढालिए उसूलों को साँचे में वक़्त के यूँ मस्लहत की आँच पे पिघला न कीजिए ख़ुद्दारियों की मौत है ख़ुद आदमी की मौत दस्त-ए-तलब को सूरत-ए-कासा न कीजिए दुनिया न भूल जाए मोहब्बत की दास्ताँ 'आरिफ़' ख़ुदा के वास्ते ऐसा न कीजिए