आप मेरी तबीअ'त से वाक़िफ़ नहीं मुझ को बे-जा तकल्लुफ़ की आदत नहीं मुझ को पुर्सिश की पहले भी ख़्वाहिश न थी और पुर्सिश की अब भी ज़रूरत नहीं यूँ सर-ए-राह भी पुर्सिश-ए-हाल की इस ज़माने में फ़ुर्सत किसी को कहाँ आप से ये मुलाक़ात रस्मी सही इतनी ज़हमत भी कुछ कम इनायत नहीं आप इस दर्जा अफ़्सुर्दा-ख़ातिर हों आप कोई असर अपने दिल पर न लें मैं ने जो कुछ कहा इक फ़साना कहा और फ़साने की कोई हक़ीक़त नहीं ऐसी महफ़िल में शिरकत से क्या फ़ाएदा ऐसे लोगों से कोई तवक़्क़ो भी क्या जो कहा जाए ख़ामोश सुनते रहो लब-कुशाई की क़तअन इजाज़त नहीं नुक्ता-चीनी तो फ़ितरत है इंसान की किस का शिकवा करें किस को इल्ज़ाम दें ख़ुद हमीं कौन से पारसाओं में हैं हम को दुनिया से कोई शिकायत नहीं मुझ को मा'लूम है आप मजबूर हैं आप मेरे लिए मुफ़्त रुस्वा न हों ऐसे हालात में बे-रुख़ी ठीक है मुझ को इस बात पर कोई हैरत नहीं कुछ ये 'इक़बाल' ही पर नहीं मुनहसिर सरगिरानी मुसल्लत है माहौल पर अक़्ल-ओ-दानिश के बढ़ते हुए बोझ से सर उठाने की दुनिया को फ़ुर्सत नहीं