आसमाँ सुर्ख़ हुआ नाला-ए-शब-गीर के बा'द हाल-ए-दिल उस पे खुला है बड़ी ताख़ीर के बा'द तलब-ए-ख़्वाब में कितनी थीं परेशाँ आँखें कितनी हैरान हैं अब ख़्वाब की ता'बीर के बा'द खुल तो सकते थे मिरी आँख पे मंज़र कई और मैं ने देखा ही नहीं कुछ तिरी तस्वीर के बा'द ज़िंदगी कटती रही और मिरे पैरों में एक ज़ंजीर पड़ी दूसरी ज़ंजीर के बा'द मा'रका अब के मोहब्बत में अजब गुज़रा है हाथ ख़ाली ही रहे लम्हा-ए-तस्ख़ीर के बा'द कूचा-ए-हर्फ़ में ये जान के आए 'ख़ावर' 'मीर' सा 'मीर' से पहले न हुआ 'मीर' के बा'द