इस दिल की इमारत में तुम जल्वा दिखा जाना या नूर-ए-मुबीं बन कर आँखों में समा जाना अपना तो शिकस्ता-दिल इक ख़ाना-ए-वीराँ है क़दमों से इसे अपने आबाद बना जाना उश्शाक़ के मरक़द पर हसरत यही कहती है तुम फ़ित्ना-ए-महशर हो सोतों को जगा जाना उन ख़ाक-नशीनों से मिलना तुम्हें लाज़िम है उश्शाक़ के कूचे में भूले से तू आ जाना मुद्दत से पियासा मैं बैठा हूँ तिरे दर पर इक जाम मोहब्बत का ख़ुद आ के पिला जाना इस गर्दिश-ए-क़िस्मत ने सर-गश्ता किया याँ भी ऐ ख़िज़्र-ए-रह-ए-उल्फ़त तुम राह बता जाना आए न सर-ए-बालीं गर मेरे दम-ए-मुर्दन अब बहर-ए-दुआ दिलबर मरक़द पे तो आ जाना क्या क्या न जफ़ा मुझ पे होती है शब-ए-फ़ुर्क़त उल्फ़त ने तिरी मुझ को पाबंद-ए-वफ़ा जाना ये इश्क़ 'जमीला' का ऐ ख़िज़्र-ए-रह-ए-उल्फ़त महबूब के जल्वे को असरार-ए-ख़ुदा जाना