इस एक बात पे मुश्किल में जाँ है कोई सुने कि चुप है और कराँ-ता-कराँ है कोई सुने सदा यही है कि ताराँ के हर्फ़ सुनने दो मगर कोई नहीं सुनता फ़ुग़ाँ है कोई सुने जो नज़्म भी है मोहब्बत की नज़्म लगती है कि जिस्म-ओ-जाँ में मोहब्बत जवाँ है कोई सुने चला गया है मगर उस के पैरहन की शमीम ये कह रही है वो अब तक यहाँ है कोई सुने कमाल-ए-सुब्ह के बदले हयात मुमकिन है ये बात शे'र की सूरत अयाँ है कोई सुने बहुत बड़ा भी है 'बेदी' ये रेत का सहरा सफ़र इसी लिए इक इम्तिहाँ है कोई सुने