इस एक डर से ख़्वाब देखता नहीं जो देखता हूँ मैं वो भूलता नहीं किसी मुंडेर पर कोई दिया जिला फिर इस के बाद क्या हुआ पता नहीं मैं आ रहा था रास्ते मैं फूल थे मैं जा रहा हूँ कोई रोकता नहीं तिरी तरफ़ चले तो उम्र कट गई ये और बात रास्ता कटा नहीं इस अज़दहे की आँख पूछती रही किसी को ख़ौफ़ आ रहा है या नहीं मैं इन दिनों हूँ ख़ुद से इतना बे-ख़बर मैं बुझ चुका हूँ और मुझे पता नहीं ये इश्क़ भी अजब कि एक शख़्स से मुझे लगा कि हो गया हुआ नहीं