इस इल्तिफ़ात पर कोई दामन न थाम ले है मस्लहत यही कि तग़ाफ़ुल से काम ले कुछ देर की ख़ुशी से तो बेहतर है ग़म मुझे मेरी तरफ़ न देख न मेरा सलाम ले मैं भी तो तेरी बज़्म में आया हूँ देर से अब तू भी मुझ से हो के ख़फ़ा इंतिक़ाम ले जी भर के पहले अपनी नज़र से पिला मुझे वर्ना ये मय-कदा ले सुराही ले जाम ले मेरी निगाह-ए-शौक़ पे फिर कीजियो नज़र पहले ज़रा ख़ुद अपने कलेजे को थाम ले महफ़िल में सब के सामने दाद-ए-ग़ज़ल न दे यूँ दिल ही दिल में शौक़ से लुत्फ़-ए-कलाम ले जिस ने कभी ख़ुलूस भी माँगा न हो तिरा इस अहल-ए-दिल का नाम ब-सद-एहतिराम ले जीने न देंगे देखने वाले कभी हमें अच्छा ये है कि जब्र-ए-मोहब्बत से काम ले है देखना ही मेरी तरफ़ तो ब-एहतियात महफ़िल में पहले जाएज़ा-ए-ख़ास-ओ-आम ले तेरा हूँ और तेरा रहूँगा तमाम उम्र लेकिन मिरे लिए न कोई इत्तिहाम ले मिलना नसीब में है तो मिल जाएँगे कभी जान-ए-'शमीम' सब्र-ओ-तहम्मुल से काम ले