इस जहाँ से कोई भी सौदा न कर देख अपने आप को रुस्वा न कर छीन कर यादों का सरमाया मिरी इस भरी महफ़िल में यूँ तन्हा न कर अजनबी हूँ अजनबी ही रहने दे इस तरह मेरी तरफ़ देखा न कर पत्थरों की चोट सह लेता हूँ मैं फूल यूँ मेरी तरफ़ फेंका न कर कर 'सहर' की आबरू का कुछ ख़याल महफ़िल-ए-अग़्यार में चर्चा न कर