इस ज़मीन ओ आसमाँ पर ख़ाक डाल कुछ नहीं तेरा यहाँ पर ख़ाक डाल नक़्श होने की तिरी सूरत है और इस वजूद-ए-बे-निशाँ पर ख़ाक डाल ख़त्म सब कुछ हार से होता नहीं उठ और एहसास-ए-ज़ियाँ पर ख़ाक डाल दर्द जब समझे तिरा वो बे-ज़बाँ आरज़ू-ए-हम-ज़बाँ पर ख़ाक डाल इस मकानी क़ैद से बाहर निकल इस ज़मान ओ ला-ज़माँ पर ख़ाक डाल तू भरम है और न कोई वहम है छोड़ माया के जहाँ पर ख़ाक डाल इन असातीरी फ़ज़ाओं से निकल इस तिलिस्म-ए-दास्ताँ पर ख़ाक डाल इस से पहले हर यक़ीं हो गर्द गर्द हर क़यास और हर गुमाँ पर ख़ाक डाल