इस क़दर भी तो मिरी जान न तरसाया कर मिल के तन्हा तू गले से कभी लग जाया कर देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर हम तो अपने हैं मियाँ ग़ैर से शरमाया कर ये बुरी ख़ू है दिला तुझ में ख़ुदा की सौगंद देख उस बुत को तू हैरान न रह जाया कर हाथ मेरा भी जो पहुँचा तो मैं समझूँगा ख़ूब ये अँगूठा तू किसी और को दिखलाया कर गर तू आता नहीं है आलम-ए-बेदारी में ख़्वाब में तू कभी ऐ राहत-ए-जाँ आया कर ऐ सबा औरों की तुर्बत पे गुल-अफ़्शानी चंद जानिब-ए-गोर-ए-ग़रीबाँ भी कभी आया कर हम भी ऐ जान-ए-मन इतने तो नहीं नाकारा कभी कुछ काम तू हम को भी तो फ़रमाया कर तुझ को खा जाएगा ऐ 'मुसहफ़ी' ये ग़म इक रोज़ दिल के जाने का तू इतना भी न ग़म खाया कर