इस क़दर ग़र्क़ लहू में ये दिल-ए-ज़ार न था जब हिना से तिरे पाँव को सरोकार न था हुस्न का जज़्ब ज़ुलेख़ा सती कुछ चल न सका वर्ना ये पाक गुहर क़ाबिल-ए-बाज़़ार न था दिल में ज़ाहिद के जो जन्नत की हवा की है हवस कूचा-ए-यार में क्या साया-ए-दीवार न था दिल मिरा इश्क़ के धड़कों से मुआ जाता है ये वो दिल है कि कोई ऐसा जिगर-दार न था आप से क्यूँ न हुआ कह के 'यक़ीं' को मारा रास्त पूछो तो कोई मुझ सा गुनहगार न था