इस क़दर ग़ौर से न सुन फ़ेलुन बहर टूटी हुई है चुन फ़ेलुन गर अरूज़ी ज़बान सीखनी है फिर तो कहना पड़ेगा कुन फ़ेलुन हम ने उस को किया है इस्ति'माल क्यों न गाए हमारे गुन फ़ेलुन लफ़्ज़ होता है हर ग़ज़ल की आँख ख़्वाब के साथ उस में बुन फ़ेलुन ज़िंदगी ऐसी बहर है जैसे फ़ाएलातुन मफ़ाएलुन फ़ेलुन है अगर शाइ'री कोई नग़्मा दोस्तो फिर है उस की धुन फ़ेलुन पी ग़ज़ल की शराब दोनों ने है मिरे साथ साथ टुन फ़ेलुन