इस क़दर पाएमाल हैं हम लोग आप अपनी मिसाल हैं हम लोग बे-नियाज़-ए-मलाल हैं हम लोग लाख सैद-ए-ज़वाल हैं हम लोग अपने इस्याँ की शर्मसारी से पैकर-ए-इंफ़िआल हैं हम लोग इक फ़साना है शौकत-ए-माज़ी देख लो ख़स्ता-हाल हैं हम लोग बुत-कदे में अज़ाँ न दें तो सही यादगारी बिलाल हैं हम लोग क्यूँ परेशाँ है ऐ दिल-ए-महज़ूँ दौलत-ए-ला-ज़वाल हैं हम लोग हम से रौशन है आसमान-ए-अदब ग़ैरत-ए-सद-हिलाल हैं हम लोग इक मुअम्मा है ज़िंदगी 'शातिर' क्या अनोखा सवाल हैं हम लोग