इस सफ़र में नीम-जाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं और ज़ेर-ए-साएबाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं ज़हर में डूबी हुई परछाइयों का रक़्स है ख़ुद से वाबस्ता यहाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं ना-तमामी के शरर में रोज़ ओ शब जलते रहे सच तो ये है बे-ज़बाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं ज़र्द लफ़्ज़ों के धुँदलके शाम की आँखों में हैं गरचे ज़ेब-ए-दास्ताँ मैं भी नहीं तू भी नहीं ना-तवाँ जिस्मों पे क्यूँ है गर्दिशों का मोर-नाच शब-गज़ीदा आसमाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं बे-असर हो जाए जिस से दिल का ज़ख़्म-ए-आतिशीं मरहम-ए-वहम-ओ-गुमाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं शब की गहरी ख़ामुशी भी गोश-बर-आवाज़ है आहटों का कारवाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं एहतियातों की गुज़रगाहें तो पीछे रह गईं अब सदा-ए-मेहरबाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं