इस से बेहतर मिरी तस्वीर नहीं हो सकती ज़ात-ए-बे-ऐब से तक़्सीर नहीं हो सकती कुछ तो है ख़ास असीरी में लताफ़त वर्ना सब को दरकार यूँ ज़ंजीर नहीं हो सकती मुझ को धुँदला सा कोई ख़्वाब नज़र आया है अब सहर होने में ताख़ीर नहीं हो सकती अपनी बीनाई से रौशन रखो आँखें अपनी हर किसी ग़ार में तनवीर नहीं हो सकती कैसी उलझन है कि जिस शय की तलब है मुझ को वो किसी शख़्स की जागीर नहीं हो सकती जब क़लम हाथ में आया तो ये जाना मैं ने मुझ से हालत मेरी तहरीर नहीं हो सकती ये भरोसे की है बुनियाद भी लाज़िम 'राहत' यूँ इमारत कोई ता'मीर नहीं हो सकती