इस शहर के यहीं कहीं होने का रंग है इस ख़ाक में कहीं कहीं सोने का रंग है पाईं चमन है ख़ुद-रौ दरख़्तों का झुण्ड सा मेहराब-ए-दर पे उस के न होने का रंग है तूफ़ान-ए-अब्र-ओ-बाद निहाँ साहिलों पे है दरिया की ख़ामुशी में डुबोने का रंग है इस अहद से वफ़ा का सिला मर्ग-ए-राएगाँ उस की फ़ज़ा में हर घड़ी खोने का रंग है है सर-ज़मीन-ए-शोर कि इक चादर-ए-सफ़ा कैसा अजीब मुर्दा बिछौने का रंग है सुर्ख़ी है जो गुलाब सी आँखों में ऐ 'मुनीर' ख़ार-ए-बहार दिल में चुभोने का रंग है