इस तरह आता हूँ बाज़ारों के बीच जैसे नींद आ जाए बेदारों के बीच मैं मुसलसल मुल्तवी होता हुआ हर घड़ी हर गाम तय्यारों के बीच लड़खड़ाने लगती हैं साँसें मिरी हर-नफ़स हर हाल हमवारों के बीच याद सहरा की हुजूम-ए-शहर में ज़िंदगी का ख़्वाब बीमारों के बीच ख़ुद-ब-ख़ुद बंद-ए-क़बा खुलते हुए हैरत-ए-इक़रार इन्कारों के बीच हम ख़ुद अफ़्साने के बाहर हो गए मर ही जाते ऐसे किरदारों के बीच हम अलम-बरदार अपने जेहल के मकतबों के इल्म-बरदारों के बीच 'फ़रहत-एहसास' आ गया क्या बज़्म में सादगी आई है होशयारों के बीच