इस तरह कर गया दिल को मिरे वीराँ कोई न तमन्ना कोई बाक़ी है न अरमाँ कोई हर कली में है तिरे हुस्न-ए-दिल-आरा की नुमूद अब के दामन ही बचेगा न गिरेबाँ कोई मय-चकाँ लब नज़र आवारा निगाहें गुस्ताख़ यूँ मिरे पहलू से उठा है ग़ज़ल-ख़्वाँ कोई ज़ुल्फ़ बरहम है दिल आशुफ़्ता सबा आवारा ख़्वाब-ए-हस्ती सा नहीं ख़्वाब परेशाँ कोई नग़्मा-ए-दर्द से हो जाता है आलम मामूर इस तरह छेड़ता है तार-ए-रग-ए-जाँ कोई