इस तरह महव-ए-जमाल-ए-मो'तबर हो जाइए जब नक़ाब उट्ठे तो सर-ता-पा नज़र हो जाइए ख़ुद को रौशन कीजिए ख़ुद जल्वा-गर हो जाइए अपनी सुब्ह-ओ-शाम के शम्स-ओ-क़मर हो जाइए हक़-परस्त-ओ-हक़-शनास-ओ-हक़-निगर हो जाइए रात के माहौल में नूर-ए-सहर हो जाइए धूप के मारों को जिस की छाँव में राहत मिले रेग-ज़ार-ए-ज़िंदगी में वो शजर हो जाइए देख कर इंसान पर इंसान के ज़ुल्म-ओ-सितम जी में आता है कि महरूम-ए-नज़र हो जाइए वक़्त वो है छोड़ कर सब मस्लहत-अंदेशियाँ और भी दीवाना-ओ-शोरीदा-सर हो जाइए लोग चुन लें जिस की तहरीरें हवालों के लिए ज़िंदगी की वो किताब-ए-मोतबर हो जाइए ख़ाक होना ही मुक़द्दर में है ऐ 'ज़ाहिद' तो फिर ख़ाक-ए-पा-ए-सय्यद-ए-वाला-गुहर हो जाइए