इस तरह पहुँचेगा कैसे पाया-ए-तकमील को आख़िरी कहता है क्यूँ ताबूत की हर कील को ख़ुद ज़रूरत-मंद है रोता है ख़ुद तर्सील को चाहिए पैग़ाम्बर अपने लिए जिबरील को कब से सोता है करो बेदार मीकाईल को वर्ना काफ़ी काम मिल जाएगा इज़राईल को तू ने गो कोई कसर छोड़ी नहीं रब्ब-ए-करीम काम ये करना पड़ेगा फिर भी इस्राफ़ील को शहर के क़ानून दिन में तोड़ना आसाँ न था रात में निकली है दुनिया इल्म की तहसील को