इस तरह से कश्ती भी कोई पार लगे है काग़ज़ का बना हाथ में पतवार लगे है आज़ाद लगे है न गिरफ़्तार लगे है दीवाने को दर आहनी दीवार लगे है इक लाश है लेकिन बड़ी जाँ-दार लगे है शोला सी कोई चीज़ सर-ए-दार लगे है पहचान लो उस को वही क़ातिल है हमारा जिस हाथ में टूटी हुई तलवार लगे है ख़ामोश गिराँ-बार फ़ज़ाओं में घुटन सी ये तो किसी तूफ़ान की ललकार लगे है इक वक़्त वो था जब रसन-ओ-दार में था लुत्फ़ अब लुत्फ़ भी उन का रसन-ओ-दार लगे है दिन चढ़ने लगा तेज़ी से घटने लगे साए राही कोई हम को पस-ए-दीवार लगे है इक दाएरा-ए-फ़िक्र में महदूद है आलम हर पा-ए-नज़र सूरत-ए-परकार लगे है सुनने में तो ग़ज़लें बहुत अच्छी लगीं 'वामिक़' क़िर्तास पे इक ऐसी जो शहकार लगे है